लहर आती रही,, लहर जाती रही
हर लहर इक्क नयी याद दिलाती रही
इक्क लहर ने यादों का बचपन छुआ
वो चुनमुन सी बातें अब भूल सा गया
इक्क लहर ने जब यौवन की याद दिलाई
बरबस ही भूली कहानी याद आई
में चुप था मगर आँख सबकुछ कहती गई
लहर सब कुछ वापिस वहा ले गई
अबकी लहर मुझको बिलकुल अपनी सी लगी
मुस्कुराती आँखे थी उसमे और चेहरा वही
दिल ना मन और हाथो ने लहर को छुआ
मनो होठो से होठों का चुम्बन हुया
इस लहर ने साहिल की क्या बदली फिजा
हर गम जैसे मुझ से कोसों जुदा हुया
कुछ छोटी लहरों ने यादों की बदली दिशा
घर के चिरागों से साहिल रोशन हुया
इस नयी लहर ने फिर से झकझोरा मुझे
लगा जैसे दोस्त सब भूल गए हैं मुझे
बिन अपनों के क्या यह साहिल समंदर
अपनों से ही होता है “घर एक मंदिर”
Hrishikesh Mukherjee… forever
1 day ago
No comments:
Post a Comment